नवादा: बिहार के नवादा में एक बार फिर बीजेपी सक्रिय हो गई है। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यह सीट सहयोगी दल लोजपा के नाम की थी और तब लोजपा के चंदन सिंह ने जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा अपनी तीसरी जीत के लिए नवादा से राज्यसभा सदस्य विवेक ठाकुर को चुनावी जंग में उतारा है। शुरुआती दौर में स्थानीय उम्मीदवार के सवाल पर और गायक गुंजन सिंह के चुनावी मैदान में उतर जाने से भगवा का रंग थोड़ा फीका पड़ रहा था। पर पीएम मोदी अपने संबोधन से विरोधियों की धार को कुंद कर गए। माना जा रहा है कि पीएम मोदी की एंट्री के बाद बीजेपी विरोधियों पर अब भारी पड़ने लगी है।
स्थानीय उम्मीदवार का मसला और गुंजन सिंह
नवादा लोकसभा में स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उठे थे। तब भाजपा के भोला सिंह उम्मीदवार थे। वर्ष 2014 के लोकसभा में भी स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा उठा था। तब गिरिराज सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे। और अंत में सब ठीक हुआ और भोला सिंह , गिरिराज सिंह सांसद बने । गिरिराज सिंह तो मोदी कैबिनेट में मंत्री भी बने। वर्ष 2019 में यह सीट लोजपा को गई। और लोजपा ने भी चंदन सिंह को उतारा। ये भी स्थानीय उम्मीदवार नहीं थे, पर नवादा की जनता ने इन्हें भी संसद भेजा।वर्ष 2024 के लोकसभा में नवादा के कई नेताओं का सुझाव था इस बार स्थानीय उम्मीदवार उतारा जाए। इस उम्मीद पर नवादा के कई विधायक नवादा से चुनाव लड़ना चाहते थे। परंतु चर्चा है कि आलाकमान ने नवादा लोकसभा के लिए विवेक ठाकुर का चयन किया। इस निर्णय को लेकर नवादा की जनता और यहां के नेताओं में भारी रोष था। लेकिन पीएम मोदी के संबोधन के बाद समा बंध गई। भगवा का रंग कुछ और चटक हो गया। पीएम मोदी देश की जरूरत के मद्दे नजर स्थानीय विरोध को पूरी तरह दवा तो नहीं पाए पर उसकी इंटेंसिटी को कम कर विवेक ठाकुर के काम को आसान कर गए।
बहुत कुछ ऐसा ही मोदी के संबोधन के बाद मशहूर गायक गुंजन सिंह की लोकप्रियता की धार की भी हुई। और मोदी के संबोधन के बाद आए राजनीतिक हालात में विवेक ठाकुर को एक मजबूत प्लेटफार्म उपलब्ध करा गया, जहां से वे अपनी बात कह सकते थे और संगठन के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकते थे।
विनोद यादव का मैदान में बने रहना
जिस दृढ़ता के साथ विनोद यादव चुनावी समर में बने हुए हैं वहां से रास्ता त्रिकोणात्मक संघर्ष को जाता है। यह कही न कही इंडिया गठबंधन के विरुद्ध जाता है। लेकिन तेजस्वी यादव के संबोधन के बाद एमवाई समीकरण इंटैक्ट रह जाता है तो एनडीए के उम्मीदवार को परेशानी से गुजरना पड़ सकता है।
चुनौती कुशवाहा मत की भी
सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद के साथ-साथ उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए में शामिल होने के बाद एनडीए खास कर भाजपा का कोर वोटर कुशवाहा माना जा रहा है। अब नीतीश कुमार के एनडीए में आ जाने के बाद कुर्मी कुशवाहा का वोट एनडीए की थाती मानी जा रही है। राजद ने एनडीए के इस कोर वोट में सेंधमारी का खेल श्रवण कुशवाहा की उम्मीदवारी देने के साथ शुरू कर दिया है। अब नवादा का लोकसभा चुनाव राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के लिए लिटमस टेस्ट साबित होने जा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी के पास वोट ट्रांसफर करने की कैपिसिटी बची है? अगर भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में कुशवाहा वोट अधिकतम भाजपा की झोली में जाता है तो राजद के लिए यह चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। लेकिन कुशवाहा वोट राजद के उम्मीदवार को मिल जाता है तो भाजपा उम्मीदवार की परेशानी बढ़ जाएगी।
विधानसभा क्षेत्र की भी भूमिका
नवादा लोकसभा के अंदर आने वाले विधानसभा की स्थितियों का तुलना करें तो इस लोकसभा के अंदर आने वाले चार विधानसभा में वर्ष 2020 के विधानसभा में महागठबंधन की जीत हुई है। वहीं एनडीए के खाते में दो विधानसभा सीटें ही आई हैं। बरबीघा विधानसभा क्षेत्र से जदयू के सुदर्शन ने कांग्रेस के गजानंद शाही को लगभग 100 से ज्यादा मतों से हराया। वारसलीगंज विधानसभा से भाजपा की अरुणा देवी ने कांग्रेस के सतीश कुमार को लगभग 9 हजार मतों से हराया। शेष चार विधानसभा में तीन राजद और एक सीट पर कांग्रेस के कब्जे में है।रजौली से राजद के प्रकाश वीर, नवादा से राजद की विभा देवी, गोविंदपुर से राजद के मो कामरान ने जीत का परचम लहराया। हिसुआ से कांग्रेस की विधायक नीतू सिंह हैं। विधानसभा में तो राजद की बढ़त साफ दिखती है। राजनीतिक विश्लेषक की माने तो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बुनियादी अंतर है। लोकसभा चुनाव में बड़े मुद्दे परवान पाते हैं जबकि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दा तुल पकड़ लेते हैं। छोटी मोटी घटना का भी विधानसभा चुनाव में प्रभाव पड़ता है।
क्या कहते हैं भाजपा प्रवक्ता
भाजपा के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि लोकसभा एक बड़े मुद्दे को लेकर लड़ा जा रहा है। देश दुनिया के सामने तन कर खड़ा रहने का समय है। एक बड़े गोल के लिए छोटे-छोटे मुद्दे दम तोड़ देते हैं। अभी का समय विश्व में तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का है। और इस बार तो मोदी की गारंटी है और राममंदिर का मसला भी। जहां तक नवादा का सवाल है लव-कुश समीकरण भाजपा के पक्ष में हैं। लालू यादव ने नवादा में जो प्रयोग किया है वह मुंगेर लोकसभा में तीन बार कर चुके है और तीनों बार सफलता नहीं मिली। नवादा में भी लालू का समीकरण फेल होने जा रहा है।